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A moral story in hindi: कथाएं और बचपन अलग हैं। ये कहानियां हमें जीवन की एक छोटी सी सीख सिखाती हैं, जो बच्चों का व्यक्तित्व बनाती हैं। हमारे जहन में बच्चों की नैतिक कहानियां अब नहीं हैं, लेकिन उनसे मिली सीख आज भी हमारे दिलों में है। इसके बावजूद, आज की दुनिया में हम अक्सर अपने बच्चों को टीवी या मोबाइल का सामरिक महत्व सिखाते हैं और नैतिक मूल्यों का विकास करना भूल जाते हैं।
नैतिक कहानी ने हमारे पूर्वजों को नैतिकता सिखाई थी, अगर हमें याद है। वह नैतिक कहानियां आज भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे हमारे बच्चों को नैतिक मूल्यों को समझने में मदद करते हैं। इसलिए इस ब्लॉग में ऐसी कुछ नैतिक कहानियां शामिल की गई हैं।
आपके बच्चों को महत्वपूर्ण लग सकते हैं। ये कहानियां आपके बच्चों को सोचने में मदद करती हैं कि जीवन में नैतिक मूल्यों का होना कितना महत्वपूर्ण है। आपके बच्चे इन कहानियों के माध्यम से नैतिक मूल्यों की गहराई और महत्व समझ सकते हैं। यह उन्हें उच्चतम मानवीय गुणों की पहचान कराती है, जैसे ईमानदारी, सहानुभूति, धैर्य, सत्यनिष्ठा और बच्चों से गलती से सीखने की क्षमता।
इन कहानियों से आप अपने बच्चों को सच्चाई और नैतिकता की प्रेरणा दे सकते हैं। वे गलती करना स्वाभाविक है, लेकिन उससे सीखना और उसे सुधारना भी बहुत महत्वपूर्ण है। ये कहानियां उन्हें ईमानदारी और सच्चाई को प्राथमिकता देना, अपने कर्तव्यों का पालन करना और दूसरों की सहायता करना भी सिखाएंगी।
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कौवा और कोयल की कहानी – Kauwa Aur Koyal Ki Kahani
दोस्तों सालों साल पहले की बात है दसौली नामक गांव में एक कौवा रहता था वहां एक बड़ा सा बरगद का पेड़ था उस बरगद पर कौवा और कोयल दो रहते थे उनके दोनों घोसले थे उसी घोसले में रहते थे एक रात तेज आंधी चलने से और तेज बारिश होने से बरगद में रखे घोसले बर्बाद हो गए थे और कौवा और कोयल दोनों अपनी भूख मिटाने के लिए इधर-उधर ढूंढ रहे थे लेकिन उन्हें कुछ भी नहीं मिला तभी कोयल ने कौवे से कहा हनी बरगद पर खाने के लिए कुछ नहीं मिला है मतलब कुछ नहीं है |
तभी कोयल ने कव्वे से कहा दुखी अंदाज में कहा जब मैं अंडा दूं तब उसे तुम खा लेना और अपनी भूख मिटा लेना और जब तुम अंडा दोगे तो मैं उसे खाकर अपनी भूख मिटा लूंगी कव्वाली कोयल की बात मानी और कुछ समय इंतजार किया और कौवे ने अंडा दिया और कोयल ने उसे खाकर अपनी भूख मिटा ली फिर कोयल ने अंडा दिया और कौवा जैसे ही कोयल की अंडा खाने के लिए आया तो उसे रोका लेकिन उसे कहा लेकिन तुम्हारी अभी सोच गंदी है इसे धो कर आओ फिर खाओ गांव के तालाब के किनारे अपनी चौथ धोलका राव और जब वहां तालाब पर पहुंचा और तालाब से बोलने लगा तुम मुझे पानी दो मुझे क्यों सुनना है और मैं कोयल का अंडा खा लूंगा तलाब बोला ठीक है पानी के लिए तुम बर्तन लेकर आओ कौवा जल्दी जाता है |
कुमार के पास कुम्हार से बोलता है मुझे घड़ा दे दो उसमें मुझे पानी भरना है और सोच बोलना है फिर मैं कोयल का अंडा खा लूंगा तब कुमार ने बोला तुम मुझे मिट्टी लाकर दो मैं तुम्हें बर्तन बना कर दूंगा यह सुनते धरती मां से मिट्टी मांगने लगा वह बोला ना मुझे मिट्टी दे दो उसे मैं बर्तन बना लूंगा फिर पानी भर लूंगा फिर अपनी सोच लूंगा और कोयल का अंडा खा लूंगा इससे मेरी भूख मिटेगी धरती मां बोली मैं तुम्हें तो मिट्टी दे दूंगी लेकिन तुम खुरपी लेकर आओ मुझसे खुद कर मिट्टी निकाल लो दौड़ते हुए कौवा लोहार के पास गया लोहार से बोलता है|
मुझे खुरपी दे दो और उसे कहानी बताने लगता है कि मैं मिट्टी निकाल लूंगा मिट्टी निकालकर बर्तन बनाऊंगा बर्तन बनाने के बाद पानी भर लूंगा पानी भरने के बाद अपनी सोच लूंगा छोड़ने के बाद में कोयल का अंडा खा लूंगा लोहार ने अपनी गर्म गर्म खुरपी कौ को दे दी जैसे ही कौवे ने उसे पकड़ा उसकी चौथ जल गई और कौवा तड़पते हुए वही मर गया इस चतुराई से कोयल ने अपने अंडे को कौवे से बचा लिया और अपनी भूख भी मिटा ली।
तो बच्चों इस कहानी से क्या सीख मिला
बच्चे इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें किसी पर भी आंख मूंदकर भरोसा नहीं करना चाहिए नए नुकसान खुद का ही होगा।
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लालची लकड़हारे की कहानी – Lalchi lakadhare ki kahani
पलटू पुर नामक गांव में एक रामलाल नाम का लकड़हारा रहता था मैं अपना जीवन यापन चलाने के लिए वह जंगल पर लकड़ियां चुनता और उसे बेचकर थोड़े बहुत पैसे इकट्ठा कर अपना गुजारा चला रहा था कुछ ही दिनों बाद रामलाल भाई साहब की शादी हो जाती है फिर उसके खर्चा बढ़ जाते हैं और उसकी पत्नी भी बड़ी खर्चीली होती है इसलिए अब लकड़ियों से बेचकर उसके घर नहीं चलता है |
वह काफी मुश्किल में रहता है और ऊपर से राम लाल की पत्नी कपड़े खरीदने के लिए नई चीजें लाने के लिए लेकिन रामलाल बहुत मानता था उसे नाराज करना बिल्कुल पसंद ही नहीं था पूरा करने के लिए चला गया पलटू पुर से लगभग 5 से 10 किलोमीटर दूर घने जंगल में जा पहुंचे और सारी लकड़ियां सुनकर वह बाजार में बेचने के लिए इकट्ठा किया उस दिन में पहले से कई गुना ज्यादा लग जाएगी और वह बहुत सारी लकड़ियां इकट्ठा कर बाजार में भेज देता और उसके पास बहुत सारे पैसे आते हैं वह यह काम हर रोज और तेजी से मन लगाकर करने लगा।
फिर उसके मन में अत्यधिक लालच और बढ़ने लगता है पैसे के लिए वह अब जंगलों पर सूखी लकड़ियां ना चुनकर वह पेड़ काटने लगा और वह ज्यादा लकड़ियां हो जाती थी उन्हें बड़ी गाड़ियों पर लादकर बेच दिया करता था बाजार में जाकर उसी पैसे से पत्नी मनचाही 100 को को पूरा करना फालतू पैसे खर्च करना यह सभी और अत्यधिक होने लगा और रामलाल के पास भी बहुत सारे पैसे होते थे तो वह भी जुड़े में लगाने लगा वह ऐसे करता रहा लेकिन एक दिन रामलाल बहुत ज्यादा पैसे हार चुका था।
वह अगले दिन घने जंगल पर जाकर सोचता है कि मैं आज बड़े-बड़े पेड़ों को काट लूंगा वह जंगल में जाता है तो उसे एक अजीब सा पेड़ दिखाई देता है और रामलाल उसे देख कर चौक जाता है पेड़ की एक टहनी ने रामलाल को लपेट लिए लेकिन रामलाल कुछ समझ नहीं पाता यह क्या हो रहा है वह आवाज लगाई रोने लगा जोर जोर से चिल्लाने लगा तभी पेड़ से आवाज आई मूर्ख तो लालच के चक्कर पर मुझे काट रहा है और पैसे अय्याशी में खर्चे कर रहा है और जुए में उड़ा रहा है पैसे तुझे पता है |
पेड़ कितने कीमती होते हैं हमारे अंदर भी जान बसती है जैसे तुम्हारे अंदर जान हम तुम्हें शुद्ध हवा धूप में छाया भूख में शांति के लिए फल देते हैं फिर भी तुम्हें हमें काटकर पैसे कमाना चाह रहा है पेड़ बोलता है रामलाल को कि आज मैं तुझे भी काटती हूं देखती हूं तुझे दर्द होता है या नहीं यह सुनकर रामलाल रोने लगता है और जोर-जोर से और गिर गिरा के क्षमा मांगने लगता है और वह क्षमा मांग कर घर लौट जाता है यह सब होने के बाद में मैंने संकल्प लिया कि कभी मैं लालच नहीं करूंगा।
तो बच्चों इस कहानी से क्या सीख मिली
इस कहानी से हमें यह सीख मिली कि लालच अत्यधिक नहीं करना चाहिए और जो रामलाल काम कर रहा था वह पर्यावरण दूषित कर रहा था वृक्षों को कभी काटना नहीं चाहिए बल्कि और अत्यधिक लगाने चाहिए क्योंकि हमें उन्हीं वृक्षों से ऑक्सीजन मिलती है यदि हम उन्हें काट देंगे तो हम खुद ही संकट में आ जाएंगे तो बच्चों आप भी वृक्षों को लगाएगा ना कि काटीयेगा।
चींटी और टिड्डा की कहानी – the ant and the grasshopper story in Hindi
एक समय की बात है गर्मियों का मौसम था एक चींटी बहुत ही कड़ी मेहनत से अपना अनाथ जुदा रही थी वह सोच रही थी कि धूप से पहले मैं काम कर लो और बहुत सारा अनाज इकट्ठा कर लो चींटी कई दिनों तक यह काम को रोजाना करती थी लेकिन वहीं पास में एक कीड़ा रहता था वह सारा दिन मौज करता मस्ती करता इधर-उधर घूमता गाने गाकर मौज करता और वही पसीने से लथपथ सिटी अनाज धोते-धोते थक चुकी थी और उसने पीठ पर अनाज लेकर बिल की ओर जा ही रही थी अभी तक कराया और सामने आ गया बोला प्यारी चींटी क्यों इतनी मेहनत कर रही हो चलो मजे करते हैं दोनों बैठकर गाना गाते हैं गाना सुनाता हूं आपको और चींटी टिड्डा को नजरअंदाज कर देती है और वह अपने काम पर लग जाती है ।
मस्ती में डूबा हुआ था चीता और चींटी को देख देख कर खूब हंस रहा था तभी चींटी टिड्डे को समझाती है कि जल्द ही ठंड मौसम आने वाला है तुम भी अनाज इकट्ठा कर लो जब बर्फ गिरेगी तब आपको अनाज नहीं मिलेगा फिर क्या करोगे खाने का इंतजाम अभी से कर लो लेकिन मस्ती में टिड्डा नहीं बात सुनता है और धीरे-धीरे गर्मी का मौसम खत्म हो जाता है और बारिश आने लगती है बारिश के बाद बर्फबारी गिरने लगती है लेकिन तुझे नहीं खाने के लिए कुछ भी इकट्ठा नहीं किया था ।
बहुत परेशान था और वही आगे चींटी रह रही थी लेकिन चींटी ने पूरा अनाथ जमा करके रखा हुआ था तब वह आराम से बैठे बैठे खा रही थी और किसी को एहसास हुआ कि मैंने समय बर्बाद करके बहुत गलत किया और मुझे इसका फल मिला भूख और ठंड से करते ने चींटी से मदद मांगी कभी चींटी ने मदद कर दिया चींटी ने और ठंड से बचने के लिए काफी खास कुछ भी करते किए थे उन्होंने उसके भी दिया और रहने के लिए दिया इस तरीके से टिड्डे की जान बच पाई और वह भूख से भी बच गया।
तो बच्चों इस कहानी से क्या सीख मिली
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने मेहनत और लगन से अपने काम को अंजाम देना चाहिए ना कि बुरे लोगों के साथ में घूमना फिरना या मजाक मस्ती गुलचर्रे उड़ाना ऐसे फालतू के काम नहीं करने चाहिए आप अपने काम से काम रखें और अपने दिन को एक मेहनत में निकाल दो यही सबसे बड़ी आपकी सफलता होगी आगे चलकर