कबीर जी का जीवन परिचय

Kabir das ka jivan parichay – कबीर दास का जीवन परिचय 300 शब्दों में

kabir das ka jivan parichay in hindi: नमस्कार मित्रों आज के हम इस आर्टिकल के माध्यम से महान कवि कबीर दास जी के जीवन परिचय के बारे में जानेंगे आप को उनके बारे में विशेष प्रकार की जानकारियां बताएंगे वह किस धर्म के थे और उन्होंने अपने जीवन शैली पर किया किया और उन्होंने कितनी कृतियां लिखी और उनकी शादी किससे हुई सभी जानकारियां इस आर्टिकल के माध्यम से जानेंगे।

कबीर दास का जीवन परिचय इन हिंदी PDF

कबीर दास एक महान कवि थे उनकी कई सारी किताबें आपने पढ़ी होगी और कविताएं पढ़ी होगी और वह मन और आत्मा को छू जाती है ऐसी उनकी कविताएं थी इसके साथ ही साथ कबीर दास के दोहे भी काफी प्रसिद्ध रहे हैं और वह कभी भी जाति धर्म ऊंच-नीच को भेदभाव नहीं दिए हैं वह सभी को समान नेता समझकर सभी पर अपने दोहे एवं कविताएं लिखी हुई हैं और तभी वह इतने ज्यादा प्रसिद्ध हुए और कई समस्याओं का सामना भी करना पड़ा लेकिन वह अपनी कृतियां लिखते ही रहे उन्होंने अपना मार्ग नहीं छोड़ा आइए जानते हैं कबीर दास के जीवन परिचय के बारे में।

Kabir das का जीवन परिचय

आर्टिकल का नाम कबीर दास का जीवन परिचय (
नाम संत कबीरदास
 जन्म1398 ई०
 जन्म स्थानलहरतारा ताल, काशी
 नागरिकता भारतीय
 माता का नाम नीमा
पिता का नामनीरू
पत्नी का नाम लोई
पुत्र का नाम कमाल
पुत्री का नाम कमाली
मृत्यु1518 ई०
मृत्यु स्थानमगहर (उत्तर प्रदेश)
कर्मभूमिकाशी, बनारस
कार्यक्षेत्रकवि, समाज सुधारक, सूत काटकर कपड़ा बनाना
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मुख्य रचनाएंरमैनी, साखी, सबद
 भाषा अवधी, सधुक्कड़ी, पंचमेल खिचड़ी
 शिक्षा निरक्षर

kabir das ka jivan parichay bataiye

कबीर दास दास जी का जन्म 1938 ईस्वी में हुआ था कबीरदास के जन्म के बारे में अनेक प्रकार की कहानियां बताते हैं और कई सारे मतभेद है बहुत सारे लोग अलग-अलग जन्म स्थान कबीर दास जी के बारे में बताते हैं लेकिन कुछ लोग तो कहते हैं कि गुरु रामानंद स्वामी जी के आशीर्वाद से काशी की एक विधवा ब्रह्माणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे और ब्रह्माणी उस नवजात शिशु को लहर ताला के पास फेंक आई थी उस तालाब के पास नीरू और नीमा नाम के दो जुलाहा कपड़ा बुनने वाले रहते थे वह निसंतान थे और उनकी आवाज बच्चे की रोने की सुनाई दी नीरू और नीमा ने दोनों पास जाकर देखा तो बालक दिखाई दिया उस बालक को वह घर ले आए और उसका पालन पोषण किया।

कबीर दास जी के प्रारंभिक जीवन से यह कहानी शुरू होकर निकलती है तभी उन्होंने किसी धर्म के तरफ उन्होंने ध्यान नहीं दिया और कुछ लोग का मानना है कि वह जन्म से मुसलमान थे और युवा अवस्था में होने के पश्चात स्वामी रामानंद जी के पास शिक्षा के लिए गए थे शिक्षा के प्रभाव से वह हिंदू धर्म की बातें मालूम हुई एक दिन रात का समय कबीरदास पंचगंगा घाट की सीढ़ियों पर गिर पड़े उसी समय रामानंद जी गंगा स्नान करने के लिए सीढ़ियों से उतर रही रहे थे और उन्होंने उनका पैर कबीर दास जी के शरीर पर पड़ गया और कबीरदास के मुख से तत्काल राम शब्द निकला उसी राम को कबीर ने दीक्षा मंत्र मान लिया और रामानंद जी को अपना गुरु भी मान लिया।

और रामानंदी जी ने गुरु होने का पूरा दायित्व निभाया उन्होंने और कुछ लोगों का मानना है कि जन्म काशी में लहर ताला तलाब में उत्पन्न कमल के मनोहर पुष्प के ऊपर बालक के रूप में हुआ था कबीर दास परिजनों पर कई सारे संदेश हैं हालांकि जन्म की तिथि 1398 सुनिश्चित की गई है और जन्मस्थान लहर काला काशी और उनका मूल निवास भारतीय और माता का नाम नीमा और पिता का नाम ने

नीरू जिन्होंने लालन-पालन किया और इनके दो पुत्र हुए एक का नाम कमाल और एक का नाम कमाली था उनकी पत्नी का नाम लोई है इस तरीके से कबीरदास जी का जीवन परिचय रहा और उन्होंने कई सारी कृतियां लिखी उपन्यास भी लिखे उनके नाम नीचे जानते हैं

कबीर दास की शिक्षा

कबीर दास जी बड़े होने के पश्चात उनको छोटी उम्र में ही आश्रम भेज देते थे वह सभी बालकों से हमेशा अलग ही रहते थे और मदरसे में भी पढ़ने गए हैं और मदरसे में भेजने लायक साधन माता पिता के पास नहीं थे क्योंकि उनके माता-पिता बहुत ही गरीब थे और उन्हें खाने की ही अत्यधिक चिंता होती रहती थी पिता के मन में कबीर को पढ़ाने के विचार आया कि मैं नहीं पढ़ सका तो मेरा बेटा पढ़कर नाम रोशन करेगा उन्होंने अपनी कड़ी तपस्या मेहनत कर कबीर दास जी को पढ़ाने की कोशिश बहुत की लेकिन वह किताबी विद्या प्राप्त नहीं कर सके लेकिन उन्हें बहुत अनुभव और ज्ञान प्राप्त हुआ कबीर दास जी दोहे में कहते हैं

मसि कागद छुवो नहीं, कमल गही नहिं हाथ
पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।

Masi did not touch the paper,

the lotus did not go to the hand,

read the book, read the world,

Pandit Bhaya, no one reads two and a half letters of love,

he becomes a Pandit.

कबीर दास जी का वैवाहिक जीवन

कबीर दास जी का वैवाहिक जीवन बहुत ही अच्छा रहा है उन्होंने बैरागी की पालिका कन्या लोई के साथ उन्होंने विवाह किया जिनके पुत्र कमाल और कमाली थे कबीर दास जी के दो संतान हुए कबीर दास जी को कबीर पंथ में बाल ब्राह्मण माना जाता है पंत के अनुसार कमाल उसका शिष्य था और कमाली तथा लोई उनकी शीशी लोई शब्द का प्रयोग कबीर ने एक जगह कंबल के रूप में भी किया है कबीर की पत्नी और संतान दोनों से एक जगह लोरी को पुकार कर कबीर कहते हैं

कहत कबीर सुनो रे भाई, हरि बिन राखल हार न कोई

यह हो सकता है कि पहले लो ही पत्नी होगी बाद में कबीर ने इन्हें शिष्य बना लिया हो आरंभ से ही कबीर हिंदू भाव की उपासना करते थे और उन्होंने रामानंद जी को अपना गुरु माना और वह राम का उच्चारण करते थे लेकिन वह आगे चलकर अपने प्रवृत्तियों के साथ हुए

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सारांश

दोस्तों आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हम सभी ने जाना कबीर दास जी के जीवन परिचय के बारे में और उनके बारे में हमें उम्मीद है आपको यह आर्टिकल पसंद आया हो गए थे आर्टिकल आपको पसंद आया है तो आप अपने मित्र एवं सहपाठियों को जरूर शेयर करें ताकि वह कबीर दास जी के जीवन के बारे में जान सकें धन्यवाद

FAQs: कबीरदास जी का जीवन परिचय

कबीर दास का जीवन परिचय हिन्दी में?

कबीर दास जी का जन्म स्थान लोगों को बहुत सारे मतभेद हैं लेकिन जन्म 1398 में हुआ था और वह रामानंद जी को गुरु माना।

kabir das  के 10 बेहतरीन दोहे कौन से है?

देते हैं जिंदगी का असली ज्ञान – मैं जानूँ मन मरि गया, मरि के हुआ भूत | …
भक्त मरे क्या रोइये, जो अपने घर जाय
मैं मेरा घर जालिया, लिया पलीता हाथ
शब्द विचारी जो चले, गुरुमुख होय निहाल |
जब लग आश शरीर की, मिरतक हुआ न जाय |
मन को मिरतक देखि के, मति माने विश्वास |
कबीर मिरतक देखकर, मति धरो विश्वास |

कबीर किस धर्म के थे?

जन्म से मुसलमान थे और युवावस्था में स्वामी रामानंद के माध्यम से उन्हें हिंदू धर्म की की शिक्षा प्राप्त हुईं

Kabir Das जी की दो रचनाएं?

कबीर बीजक, सुखनिधन, होली आदि |

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